माँ
तू अनंत का विस्तार मैं शून्य का आकार हूँ
तू ममता सागर अनंत मैं बस इक जलधार हूँ।
तू मेरा संसार है मैं बस इक लघु श्रंगार
हूँ
तू देवी साक्षात है मैं तो भक्तावतार हूँ।
तू करुणा की रागिनी मैं कंपित एक तार हूँ
तू पायल है कर्म की मैं तो एक झंकार हूँ।
तू कलम की प्रेरणा है मैं सिर्फ ग्रंथकार
हूँ
तू ही शक्ति तू ही बुद्धि मैं तो बस उद्गार
हूँ।
तू तूलिका रंग भरती मैं सिर्फ रेखाकार हूँ
तू मणि माणिक रत्न है तो मैं पिरोया हार
हूँ।
तू रण की अंतिम विजय मैं बस एक ललकार हूँ
तू जगत-जननी मगर मैं मृत्यु का कारागार
हूँ।
तू जगतदात्री सकल मैं तिरा दिया उपहार हूँ
तू दिव्य ज्योति जगत की मैं दीप का आकार
हूँ।
तू नदियों का संगम मैं उथली जलधार हूँ
तेरा मंदिर पुण्य भरा मैं बस वंदनवार हूँ।
मैं किनारा ढूँढ़ता लिये हुए इक पतवार हूँ
तू तो तारणहार है पर मैं थकित लाचार हूँ।
तू प्रकृति की पूर्णता मैं पुष्प एक सुकुमार
हूँ
तू सृष्टि की संपूर्णता मैं बिन्दु निराकार
हूँ।
तू माँ है मेरी और मैं इक शिशु की पुकार
हूँ
तेरे नयन में प्यार है पर मैं तो अश्रुधार
हूँ।
तू ममता सागर अनंत मैं बस इक जलधार हूँ
तू अनंत का विस्तार मैं शून्य का आकार हूँ।
...
भूपेन्द्र कुमार दवे
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