Saturday, June 13, 2015

जाने कितना सारा लिखना था ---- भूपेंद्र कुमार दवे





जाने कितना सारा लिखना था

जाने कितना  सारा लिखना था
जीवन की इस गाथा में
जो लिखता था मिट मिट जाता था
जीवन की इस गाथा में

कोरे  कोरे  सारे   पन्ने
बचपन में  सब बिखरे थे
जीवन की माटी से पुतकर  
सब मटमैले से  दिखते थे

उन्हें समेटकर  माँ ने  मेरी
बाँधा था जिस आशा  में
लिखना था उनको ही कर्मों से
जीवन की इस गाथा में

नव साँसें  के  संग मिली थी
नवचेतना  भी   चिंतन  की
दुआ मखमली  सेज बनी थी
बारी  थी   बस  मंथन की

पर लिखना था जो कुछ मुझको
भूल गया मैं  फँस माया में
सहेज सका मैं कोरे कागज ही
जीवन  की  इस  गाथा में
           
खींच  रहे थे  अनुभव सारे
पंख  बिखरकर  टूट रहे थे
कलरव करने की चाहत भी
स्वर  साधना  भूल  रहे थे

फिर भी था मन लिखने को आतुर
पीड़ा की  ही भाषा में
पर  आँसू बह  सब मिटा रहे थे
लिखता जो मैं गाथा में

यौवन की  आँधी  से  मेरे
दीप सभी थे बुझ बुझ जाते
और अहं की बादल आकर
नीड़  कर्म के  छितरा जाते

कर्म  क्रोध में  कलुषित होकर
जलता था निज ज्वाला में
लिख पाया बस भूलों का चिठ्ठा
मैं  जीवन की  गाथा में

पर अँगडाई ले उठते थे
भाव बिचारे अंतस्तल में
खोज रहीं हों मोती जैसे
लहरें  अपने आँचल में

सारे शब्दों के अर्थ गहनतम
छिप जाते थे  साया में
अर्थहीन-सी  ठगी  हुई सी
कलम कर्म की गाथा में

सुधि के  दर्पण की  किरचें भी
बिखर बिखरकर बस चुभती थी
साँसों की  झुरमुट  में  बिंधकर
भाग्य-लेखनी   सुप्त  पड़ी  थी

लिख पाया  कुछ  काली  करतूतें
काम पिपासित काया में
मिट न सका कुछ अंतिम बेला में
जो लिख्खा था गाथा में

देख  रहा  हूँ   खड़ा  शून्य  में
क्या लिख पाया गाथा में
क्या लिखना था, क्या लिख आया
मैं  जीवन की  गाथा में।
----      -------     ----      भूपेंद्र कुमार दवे
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Sunday, March 29, 2015

Breathing life ---- Bhupendra Kumar Dave




Breathing life
You ought to go on living
Breathing life while loving
                                           
For love is joy forever
So love in fullness or never

Ask not any one you love
If really he too loves you
For when flowers blossom
They wait for none but you

Their fragrance is their love
Whether you hate it or love

Oh! See fireworks of stars
Or nature that is gleaming
Or rising sun of morning
Or setting sun of evening

They love to live forever
Sparkling with the wonder

Never a question they ask
For that is not their task

They only love to live
And in God they believe.

With God they go on living

Breathing life while loving    -----Bhupendra Kumar Dave

Sunday, March 15, 2015

चाह ----- भूपेन्द्र कुमार दवे





चाह

चाहूँ इस जटिल जगत में
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

पतझर में भी बहार-सा
हर पल खिलखिलाता मिले
काँटों से घिरे फूल-सा
खुशबू लिये, खिलता मिले

चाहूँ हर जगह, हर डगर
कुनमुनाती धूप नीचे
दूब प्यारी फैली मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

अनजान की पहचान हो
ऐसी खुशी सबको मिले
हर फूल का सम्मान हो
ऐसी महक सबको मिले

चाहूँ हमें हर बाग में
हर कली को गुदगुदाती
बस भीड़ भ्रमरों की मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

हर पंखुरी की गोद में
ओस बूँद सोती मिले
और पलकों की ओट में
मुस्कान मोती-सी मिले

चाहूँ गाँव की गली में
झोपड़ी की साये तले
समृद्ध गरीबी ही मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

मुस्कान की मीठी डली
बस हर अधर घुलती मिले
हर अमावस रात काली
दीप रोशन हर घर मिले  

चाहूँ हर छत के नीचे
जीवन के हर पलने में
सुखद स्वप्न संसार मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

माँ की गोदी में पलते
हर बच्चे को प्यार मिले
ईंधन हो हर चूल्हे में
हर तवे भी रोटी मिले

चाहूँ जीवन के घट की
हर बहती जलधारा से
मुस्कानों का मधुपान मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।

हर बच्चे को बचपन से
जीने का अधिकार मिले
हर जीवन को यौवन-सा
प्यार भरा उपहार मिले

चाहूँ अंतिम क्षण में भी
न कष्ट मिले, न दर्द मिले
न मुस्कानों का अभाव मिले
जो भी मिले , जैसा मिले
मुस्कराता,  हँसता मिले ।


                         -----      भूपेन्द्र कुमार दवे